टीवी पर इक ख़बर चली है
शहर की जानिब
बढ़ने वाले सैलाबी रेले का रुख़
गाँव की जानिब मोड़ दिया है
गाँव में बैठे इक देहाती ने ग़ुस्से में
अपना टीवी तोड़ दिया है
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एक बार फिर सलाम दूर जाने वालों को
कभी पैरों से आँखों तक चुभन महसूस होती है
तेरी मुश्किल किसी को क्या मालूम
ज़िंदगी में जो ये रवानी है
यूँ भटकने में की है बसर ज़िंदगी
शोर में इर्तिकाज़ मिलता है
जल कर जिस ने जल को देखा
इन मकानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं
रफ़्ता रफ़्ता सब कुछ अच्छा हो जाएगा
तुम ने ये माजरा सुना है क्या
सड़क
अच्छा अच्छा हो जाएगा सब कुछ अच्छा