दिया Poetry (page 5)

गिला नहीं कि किनारों ने साथ छोड़ दिया

ज़ेब बरैलवी

नग़्मा के सोज़ से अयाँ दिल का गुदाज़ हो गया

ज़हीर अहमद ताज

कभी इश्क़ साज़-ए-हयात था कभी सोज़-ए-दिल ने जला दिया

ज़ाहिदा ज़ैदी

जानती हूँ कि वो ख़फ़ा भी नहीं

ज़ाहीदा हिना

जम्हूरियत

ज़ाहिद मसूद

लाख ऊँची सही ऐ दोस्त किसी की आवाज़

ज़ाहिद कमाल

ज़ख़्मी ख़्वाबों की तीसरी दुनिया

ज़ाहिद इमरोज़

तुम जा चुकी हो

ज़ाहिद इमरोज़

थूका हुआ आदमी

ज़ाहिद इमरोज़

नीम-लिबासी का नौहा

ज़ाहिद इमरोज़

अधूरी मौत कर कर्ब

ज़ाहिद इमरोज़

चल दिया वो उस तरह मुझ को परेशाँ छोड़ कर

ज़ाहिद चौधरी

कुछ यक़ीं रहने दिया कुछ वाहिमा रहने दिया

ज़ाहिद अाफ़ाक

दिल लगा कर पढ़ाई करते रहे

ज़हीर रहमती

मिरा ही बन के वो बुत मुझ से आश्ना न हुआ

ज़हीर काश्मीरी

इस दौर-ए-आफ़ियत में ये क्या हो गया हमें

ज़हीर काश्मीरी

हैं बज़्म-ए-गुल में बपा नौहा-ख़्वानियाँ क्या क्या

ज़हीर काश्मीरी

फ़र्ज़ बरसों की इबादत का अदा हो जैसे

ज़हीर काश्मीरी

आरिज़-ए-शम्अ' पे नींद आ गई परवानों को

ज़हीर काश्मीरी

वो किसी से तुम को जो रब्त था तुम्हें याद हो कि न याद हो

ज़हीर देहलवी

रंग जमने न दिया बात को चलने न दिया

ज़हीर देहलवी

इश्क़ और इश्क़-ए-शोला-वर की आग

ज़हीर देहलवी

गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या

ज़हीर देहलवी

दे हश्र के वादे पे उसे कौन भला क़र्ज़

ज़हीर देहलवी

अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या

ज़हीर देहलवी

जब अधूरे चाँद की परछाईं पानी पर पड़ी

ज़फ़र सहबाई

जब अधूरे चाँद की परछाईं पानी पर पड़ी

ज़फ़र सहबाई

अमीर-ए-शहर इस इक बात से ख़फ़ा है बहुत

ज़फ़र सहबाई

नक़ाब उस ने रुख़-ए-हुस्न-ए-ज़र पे डाल दिया

ज़फ़र मुरादाबादी

हर्फ़-ए-तदबीर न था हर्फ़-ए-दिलासा रौशन

ज़फ़र मुरादाबादी

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