दिया Poetry (page 7)

तिरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था

ज़फ़र गौरी

फ़स्ल-ए-गुल को ज़िद है ज़ख़्म दिल का हरा कैसे हो

ज़फ़र गौरी

कभी किसी को जो देखा किसी की बाँहों में

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

वादी-ए-नील

यूसुफ़ ज़फ़र

शहर लगता है बयाबान मुझे

यूसुफ़ ज़फ़र

जिस का बदन है ख़ुश्बू जैसा जिस की चाल सबा सी है

यूसुफ़ ज़फ़र

झूट के पाँव

यूसुफ़ तक़ी

मिरे भी सुर्ख़-रू होने का इक मौक़ा निकल आता

यूसुफ़ तक़ी

ज़ख़्मों की मुनाजात में पिन्हाँ वो असर था

युसूफ़ जमाल

इसी पे शहर की सारी हवाएँ बरहम थीं

यूसुफ़ हसन

उसी हरीफ़ की ग़ारत-गरी का डर भी था

यूसुफ़ हसन

दर्द हद से सिवा दिया तू ने

यूनुस ग़ाज़ी

बताऊँ मैं तुम्हें आँखों में आँसू या लहू क्या है

यूनुस ग़ाज़ी

तेरी आँखों से मिली जुम्बिश मिरी तहरीर को

योगेन्द्र बहल तिश्ना

आती है फ़ुग़ाँ लब पे मिरे क़ल्ब-ओ-जिगर से

योगेन्द्र बहल तिश्ना

सूरज के साथ साथ उभारे गए हैं हम

यज़दानी जालंधरी

जादा-ए-ज़ीस्त पे बरपा है तमाशा कैसा

यज़दानी जालंधरी

हमें ख़बर थी बचाने का उस में यारा नहीं

यासमीन हमीद

इक बे-पनाह रात का तन्हा जवाब था

यासमीन हमीद

जो चला गया सो चला गया जो है पास उस का ख़याल रख

यासमीन हबीब

लम्स-ए-तिश्ना-लबी से गुज़री है

यासमीन हबीब

जो चला गया सो चला गया जो है पास उस का ख़याल रख

यासमीन हबीब

याद-ए-ख़ुदा से आया न ईमाँ किसी तरह

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

तेरे अल्ताफ़ का लुत्फ़ उठाते रहे

यशपाल गुप्ता

चाह थी मेहर थी मोहब्बत थी

यशब तमन्ना

ऐसा भी नहीं दर्द ने वहशत नहीं की है

यशब तमन्ना

रेत के इक शहर में आबाद हैं दर दर के लोग

यासीन अफ़ज़ाल

मसअलों की भीड़ में इंसाँ को तन्हा कर दिया

याक़ूब यावर

रू-ब-रू बुत के दुआ की भूल हो जाए तो फिर

याक़ूब तसव्वुर

मुसाफ़िरों के ये वहम-ओ-गुमाँ में था ही नहीं

याक़ूब तसव्वुर

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