जो चला गया सो चला गया जो है पास उस का ख़याल रख
जो लुटा दिया उसे भूल जा जो बचा है उस को सँभाल रख
Rahat Indori
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मैं घर से जाऊँ तो ताला लगा के जाती हूँ
मुझ को उतार हर्फ़ में जान-ए-ग़ज़ल बना मुझे
अभी गुज़रे दिनों की कुछ सदाएँ शोर करती हैं
कैसा चेहरा है रात की तफ़्सील
किस की आँखों को नींद चुभती है
कैसे हों ख़्वाब आँख में कैसा ख़याल दिल में हो
वक़्त बस रेंगता है उम्र के साथ
ख़ुद अपना साथ भी चुभने लगा था
किसी ख़सारे के सौदे में हाथ आया था
किसी के साथ किया निस्बत हुई थी
हमें सैराब रक्खा है ख़ुदा का शुक्र है उस ने