हमें सैराब रक्खा है ख़ुदा का शुक्र है उस ने
जहाँ बंजर ज़मीनें हों अनाएँ शोर करती हैं
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वक़्त बस रेंगता है उम्र के साथ
मैं घर से जाऊँ तो ताला लगा के जाती हूँ
किस की आँखों को नींद चुभती है
अभी से अच्छा हुआ रात सो गई वर्ना
जो चला गया सो चला गया जो है पास उस का ख़याल रख
आते रहते हैं फ़लक से भी इशारे कुछ न कुछ
किसी ख़सारे के सौदे में हाथ आया था
ये कमरा और ये गर्द-ओ-ग़ुबार उस का है
कैसे हों ख़्वाब आँख में कैसा ख़याल दिल में हो
एक साया सा फ़ड़फ़ड़ाता है