आते रहते हैं फ़लक से भी इशारे कुछ न कुछ
बात कर लेते हैं हम से चाँद तारे कुछ न कुछ
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Parveen Shakir
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Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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कैसे हों ख़्वाब आँख में कैसा ख़याल दिल में हो
वक़्त बस रेंगता है उम्र के साथ
जो चला गया सो चला गया जो है पास उस का ख़याल रख
किस की आँखों को नींद चुभती है
कैसा चेहरा है रात की तफ़्सील
किसी ख़सारे के सौदे में हाथ आया था
हमें सैराब रक्खा है ख़ुदा का शुक्र है उस ने
मैं घर से जाऊँ तो ताला लगा के जाती हूँ
एक साया सा फ़ड़फ़ड़ाता है
ये कमरा और ये गर्द-ओ-ग़ुबार उस का है