किस की आँखों को नींद चुभती है
कौन जागा रहा है उम्र के साथ
Rahat Indori
Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Gulzar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(849) Peoples Rate This
मुझ को उतार हर्फ़ में जान-ए-ग़ज़ल बना मुझे
आते रहते हैं फ़लक से भी इशारे कुछ न कुछ
किसी ख़सारे के सौदे में हाथ आया था
जो चला गया सो चला गया जो है पास उस का ख़याल रख
अभी गुज़रे दिनों की कुछ सदाएँ शोर करती हैं
मैं घर से जाऊँ तो ताला लगा के जाती हूँ
किसी के साथ किया निस्बत हुई थी
लम्स-ए-तिश्ना-लबी से गुज़री है
हमें भी तजरबा है बे-घरी का छत न होने का
एक साया सा फ़ड़फ़ड़ाता है
इक दिल में था इक सामने दरिया उसे कहना