दिया Poetry (page 8)

सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

उदासी छा गई चेहरे पे शम-ए-महफ़िल के

यगाना चंगेज़ी

ठोकरें खिलवाईं क्या-क्या पा-ए-बे-ज़ंजीर ने

यगाना चंगेज़ी

सज दिया हैरत-ए-उश्शाक़ ने इस बुत का मकाँ

वज़ीर अली सबा लखनवी

कोई सूरत से गर सफ़ा हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

बे-ताबी-ए-दिल ने ज़ार-पा कर

वज़ीर अली सबा लखनवी

किस की ख़ुशबू ने भर दिया था उसे

वज़ीर आग़ा

आवेज़िश

वज़ीर आग़ा

तुम्हें ख़बर भी न मिली और हम शिकस्ता-हाल

वज़ीर आग़ा

थी नींद मेरी मगर उस में ख़्वाब उस का था

वज़ीर आग़ा

सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना

वज़ीर आग़ा

सहर ने आ कर मुझे सुलाया तो मैं ने जाना

वज़ीर आग़ा

जबीं-ए-संग पे लिक्खा मिरा फ़साना गया

वज़ीर आग़ा

गुल ने ख़ुशबू को तज दिया न रहा

वज़ीर आग़ा

वफ़ूर-ए-बे-ख़ुदी में रख दिया सर उन के क़दमों पर

वासिफ़ देहलवी

बयाँ ऐ हम-नशीं ग़म की हिकायत और हो जाती

वासिफ़ देहलवी

कम सितम करने में क़ातिल से नहीं दिल मेरा

वसीम ख़ैराबादी

तुझ को सोचा तो पता हो गया रुस्वाई को

वसीम बरेलवी

रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए

वसीम बरेलवी

खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं

वसीम बरेलवी

भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे

वसीम बरेलवी

आते आते मिरा नाम सा रह गया

वसीम बरेलवी

लहू लहू सा दिल-ए-दाग़-दार ले के चले

वाक़िफ़ राय बरेलवी

तिरी नज़र में तिरे मा-सिवा नहीं होगा

वक़ार वासिक़ी

वो ज़िम्मेदारी कितनी ख़ुशी से निभाई थी

वक़ार ख़ान

ख़ता क़ुबूल नहीं है तो ख़ुद ख़ता कर देख

वक़ार ख़ान

जो तुझे और मुझे एक कर सका नहीं

वक़ार ख़ान

वो निगाह मिल के निगाह से ब-अदा-ए-ख़ास झिझक गई

वक़ार बिजनोरी

उन की चश्म-ए-मस्त में पोशीदा इक मय-ख़ाना था

वक़ार बिजनोरी

ज़मीर

वामिक़ जौनपुरी

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