दुआएं Poetry (page 4)

ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम

दाग़ देहलवी

अब के बरस भी महका महका ख़्वाब दरीचा लगता है

बुशरा ज़ैदी

जीने वाला ये समझता नहीं सौदाई है

बिस्मिल इलाहाबादी

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी

है ख़िरद-मंदी यही बा-होश दीवाना रहे

बहज़ाद लखनवी

न तो अपने घर में क़रार है न तिरी गली में क़याम है

बेदम शाह वारसी

एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला

बशीर बद्र

माँ

बक़ा बलूच

सबा के हाथ पीले हो गए

बलराज कोमल

तवील उम्र की ढेरों दुआएँ भेजी हैं

अज़लान शाह

किस लिए इस से निकलने की दुआएँ माँगूँ

अज़लान शाह

समझ के रस्ता इधर से गुज़रने वालों ने

अज़लान शाह

माँगना ख़्वाहिश-ए-दीदार से आगे क्या है

अज़लान शाह

नाला-ए-बे-आसमाँ

अज़ीज़ क़ैसी

आईने से

अज़ीज़ क़ैसी

एक जिला-वतन की वापसी

असरार-उल-हक़ मजाज़

सूख जाता है हर शजर मुझ में

असलम राशिद

बहुत ख़ामोश रह कर जो सदाएँ मुझ को देता था

आशिर वकील राव

अपने घर में मिरी तस्वीर सजाने वाले

असग़र राही

फूल पत्थर की चटानों पे खिलाएँ हम भी

असग़र मेहदी होश

क्या क्या दुआएँ माँगते हैं सब मगर 'असर'

असर लखनवी

आरिज़ में तुम्हारे क्या सफ़ा है

अरशद अली ख़ान क़लक़

ये दिन

आरिफ़ा शहज़ाद

बराए-नाम सही कोई मेहरबान तो है

अक़ील शादाब

जब अश्कों में सदाएँ ढल रही थीं

अम्बरीन सलाहुद्दीन

ज़माने-भर से जुदा और बा-कमाल कोई

अम्बर खरबंदा

यहाँ हो रहीं हैं वहाँ हो रहीं हैं

आलोक यादव

असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद

अल्लामा इक़बाल

अभी और तेज़ कर ले सर-ए-ख़ंजर-ए-अदा को

अली सरदार जाफ़री

सफ़ीर-ए-लैला-2

अली अकबर नातिक़

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