क्या क्या दुआएँ माँगते हैं सब मगर 'असर'
अपनी यही दुआ है कोई मुद्दआ न हो
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
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Rahat Indori
Wasi Shah
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Gulzar
Mohsin Naqvi
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मुझ को हर फूल सुनाता था फ़साना तेरा
निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे
काहे को ऐसे ढीट थे पहले झूटी क़सम जो खाते तुम
चुपके से नाम ले के तुम्हारा कभी कभी
दिल गया बे-क़रारियाँ न गईं
कुछ देर फ़िक्र आलम-ए-बाला की छोड़ दो
हिजाब-ए-रंग-ओ-बू है और मैं हूँ
इधर से आज वो गुज़रे तो मुँह फेरे हुए गुज़रे
आज कुछ मेहरबान है सय्याद
दिल इश्क़ की मय से छलक रहा है
जो आप कहें उस में ये पहलू है वो पहलू
इश्क़ की गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ से लाऊँ