पलकें घनेरी गोपियों की टोह लिए हुए
राधा के झाँकने का झरोका ग़ज़ब ग़ज़ब
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करम पर भी होता है धोका सितम का
इक बात भला पूछें किस तरह मनाओगे
निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे
आह किस से कहें कि हम क्या थे
तस्कीन-ए-दिल को अश्क-ए-अलम क्या बहाऊँ मैं
काहे को ऐसे ढीट थे पहले झूटी क़सम जो खाते तुम
आज कुछ मेहरबान है सय्याद
जो सज़ा दीजे है बजा मुझ को
सना तेरी नहीं मुमकिन ज़बाँ से
अश्क-ए-गुल-रंग निसार-ए-ग़म-ए-जानाना करें
ज़िंदगी और ज़िंदगी की यादगार