सना तेरी नहीं मुमकिन ज़बाँ से
मआनी दूर फिरते हैं बयाँ से
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ये सोचते ही रहे और बहार ख़त्म हुई
बहाना मिल न जाए बिजलियों को टूट पड़ने का
नवेद-ए-वस्ल-ए-यार आए न आए
आप बिक जाए कोई ऐसा ख़रीदार न था
इश्क़ की गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ से लाऊँ
भूलने वाले को शायद याद वादा आ गया
तस्कीन-ए-दिल को अश्क-ए-अलम क्या बहाऊँ मैं
भूले अफ़्साने वफ़ा के याद दिल्वाते हुए
दिल गया बे-क़रारियाँ न गईं
आह से जब दिल में डूबे तीर उभारे जाएँगे
आह किस से कहें कि हम क्या थे
आख़िर-ए-कार यही उज़्र जफ़ा का निकला