क़ासिद पयाम उन का न कुछ देर अभी सुना
रहने दे महव-ए-लज़्ज़त-ए-ज़ौक़-ए-ख़बर मुझे
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न शरह-ए-शौक़ न तस्कीन जान-ए-ज़ार में है
भूले अफ़्साने वफ़ा के याद दिल्वाते हुए
दिल इश्क़ की मय से छलक रहा है
इधर से आज वो गुज़रे तो मुँह फेरे हुए गुज़रे
करम पर भी होता है धोका सितम का
तस्कीन-ए-दिल को अश्क-ए-अलम क्या बहाऊँ मैं
ये सोचते ही रहे और बहार ख़त्म हुई
हाए रे प्यारी प्यारी आँख
आप का ख़त नहीं मिला मुझ को
कुछ देर फ़िक्र आलम-ए-बाला की छोड़ दो
आह से जब दिल में डूबे तीर उभारे जाएँगे