कुछ देर फ़िक्र आलम-ए-बाला की छोड़ दो
इस अंजुमन का राज़ इसी अंजुमन में है
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अश्क-ए-गुल-रंग निसार-ए-ग़म-ए-जानाना करें
सना तेरी नहीं मुमकिन ज़बाँ से
फिरते हुए किसी की नज़र देखते रहे
नवेद-ए-वस्ल-ए-यार आए न आए
काहे को ऐसे ढीट थे पहले झूटी क़सम जो खाते तुम
निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे
न शरह-ए-शौक़ न तस्कीन जान-ए-ज़ार में है
सहरा से चले हैं सू-ए-गुलशन
आह से जब दिल में डूबे तीर उभारे जाएँगे
मुझ को हर फूल सुनाता था फ़साना तेरा
हाए रे प्यारी प्यारी आँख
चुपके से नाम ले के तुम्हारा कभी कभी