ये सोचते ही रहे और बहार ख़त्म हुई
कहाँ चमन में नशेमन बने कहाँ न बने
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इश्क़ की गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ से लाऊँ
नवेद-ए-वस्ल-ए-यार आए न आए
आज कुछ मेहरबान है सय्याद
बहार है तिरे आरिज़ से लौ लगाए हुए
मुझ को हर फूल सुनाता था फ़साना तेरा
इक बात भला पूछें किस तरह मनाओगे
जो आप कहें उस में ये पहलू है वो पहलू
ज़िंदगी और ज़िंदगी की यादगार
निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे
तस्कीन-ए-दिल को अश्क-ए-अलम क्या बहाऊँ मैं
हाए रे प्यारी प्यारी आँख
भूले अफ़्साने वफ़ा के याद दिल्वाते हुए