जो आप कहें उस में ये पहलू है वो पहलू
और हम जो कहें बात में वो बात नहीं है
Habib Jalib
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Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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आज कुछ मेहरबान है सय्याद
इश्क़ से लोग मना करते हैं
इधर से आज वो गुज़रे तो मुँह फेरे हुए गुज़रे
चुपके से नाम ले के तुम्हारा कभी कभी
जो सज़ा दीजे है बजा मुझ को
दिल इश्क़ की मय से छलक रहा है
आप का ख़त नहीं मिला मुझ को
भूले अफ़्साने वफ़ा के याद दिल्वाते हुए
काहे को ऐसे ढीट थे पहले झूटी क़सम जो खाते तुम
मुझ को हर फूल सुनाता था फ़साना तेरा
तुम्हारा हुस्न आराइश तुम्हारी सादगी ज़ेवर
निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे