आज कुछ मेहरबान है सय्याद
क्या नशेमन भी हो गया बर्बाद
Gulzar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
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Jaun Eliya
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Wasi Shah
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बहार है तिरे आरिज़ से लौ लगाए हुए
आह किस से कहें कि हम क्या थे
पलकें घनेरी गोपियों की टोह लिए हुए
तस्कीन-ए-दिल को अश्क-ए-अलम क्या बहाऊँ मैं
दिल इश्क़ की मय से छलक रहा है
अश्क-ए-गुल-रंग निसार-ए-ग़म-ए-जानाना करें
भूलने वाले को शायद याद वादा आ गया
हाए रे प्यारी प्यारी आँख
मुझ को हर फूल सुनाता था फ़साना तेरा
नवेद-ए-वस्ल-ए-यार आए न आए
बहाना मिल न जाए बिजलियों को टूट पड़ने का