भूलने वाले को शायद याद वादा आ गया
मुझ को देखा मुस्कुराया ख़ुद-ब-ख़ुद शरमा गया
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झपकी ज़रा जो आँख जवानी गुज़र गई
मुझ को हर फूल सुनाता था फ़साना तेरा
सहरा से चले हैं सू-ए-गुलशन
नवेद-ए-वस्ल-ए-यार आए न आए
इक बात भला पूछें किस तरह मनाओगे
बहार है तिरे आरिज़ से लौ लगाए हुए
आह किस से कहें कि हम क्या थे
आह से जब दिल में डूबे तीर उभारे जाएँगे
फिरते हुए किसी की नज़र देखते रहे
आप बिक जाए कोई ऐसा ख़रीदार न था
अश्क-ए-गुल-रंग निसार-ए-ग़म-ए-जानाना करें
पलकें घनेरी गोपियों की टोह लिए हुए