बहाना मिल न जाए बिजलियों को टूट पड़ने का
कलेजा काँपता है आशियाँ को आशियाँ कहते
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दिल गया बे-क़रारियाँ न गईं
आख़िर-ए-कार यही उज़्र जफ़ा का निकला
दिल इश्क़ की मय से छलक रहा है
जो सज़ा दीजे है बजा मुझ को
न शरह-ए-शौक़ न तस्कीन जान-ए-ज़ार में है
पलकें घनेरी गोपियों की टोह लिए हुए
करम पर भी होता है धोका सितम का
बहार है तिरे आरिज़ से लौ लगाए हुए
ये सोचते ही रहे और बहार ख़त्म हुई
इश्क़ की गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ से लाऊँ
सहरा से चले हैं सू-ए-गुलशन