दोस्ती Poetry (page 7)

अब तो नहीं आसरा किसी का

हफ़ीज़ जौनपुरी

तिरे दिल में भी हैं कुदूरतें तिरे लब पे भी हैं शिकायतें

हफ़ीज़ जालंधरी

रंग बदला यार ने वो प्यार की बातें गईं

हफ़ीज़ जालंधरी

ऐ दोस्त मिट गया हूँ फ़ना हो गया हूँ मैं

हफ़ीज़ जालंधरी

लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी

हबीब जालिब

शेर से शाइरी से डरते हैं

हबीब जालिब

शे'र होता है अब महीनों में

हबीब जालिब

फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है

हबीब मूसवी

मिले भी दोस्त तो इस तर्ज़-ए-बे-दिली से मिले

गुलाम जीलानी असग़र

कुछ तुम्हारी अंजुमन में ऐसे दीवाने भी थे

गुलाम जीलानी असग़र

चराग़ से कभी तारों से रौशनी माँगे

गुहर खैराबादी

उस को मुझ से रुठा दिया किस ने

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

उल्फ़त ये छुपाएँ हम किसी की

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

ये जहाँ-नवर्द की दास्ताँ ये फ़साना डोलते साए का

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हर एक पल की उदासी को जानता है तो आ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

तेरे दर पर मक़ाम रखते हैं

ग़ुलाम मौला क़लक़

ये सच है मिल बैठने की हद तक तो काम आई है ख़ुश-गुमानी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अगर ये रंगीनी-ए-जहाँ का वजूद है अक्स-ए-आसमाँ से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ख़सारे में रहे लेकिन न छोड़ी सादगी हम ने

ग़यास अंजुम

मुझे जो दोस्ती है उस को दुश्मनी मुझ से

ग़मगीन देहलवी

न पूछ हिज्र में जो हाल अब हमारा है

ग़मगीन देहलवी

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है

ग़ालिब

ख़तर है रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-गर्दन न हो जावे

ग़ालिब

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम

फ़िराक़ गोरखपुरी

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