दोस्ती Poetry (page 8)

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

हमारे उन के तअल्लुक़ का अब ये आलम है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

ग़मों से खेलते रहना कोई हँसी भी नहीं

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

मुझे उदास कर गए हो ख़ुश रहो

फ़ाज़िल जमीली

दिल में इस का ख़याल क्यूँ आया

फ़ातिमा वसीया जायसी

मैं टूट कर उसे चाहूँ ये इख़्तियार भी हो

फ़ातिमा हसन

मैं टूट कर उसे चाहूँ ये इख़्तियार भी हो

फ़ातिमा हसन

हर एक लफ़्ज़ में पोशीदा इक अलाव न रख

फ़ारूक़ शमीम

रंग ख़ाके में नया भर दूँगा मैं

फ़ारूक़ नाज़की

शिकायत

फ़ारूक़ बख़्शी

शहर की फ़सीलों पर ज़ख़्म जगमगाएँगे

फ़ारूक़ अंजुम

राज़ उबल पड़े आख़िर आसमाँ के सीनों से

फ़रहत क़ादरी

ज़माना झुक गया होता अगर लहजा बदल लेते

फ़रह इक़बाल

मिरे हम-रक़्स साए को बिल-आख़िर यूँही ढलना था

फ़रह इक़बाल

न दहर में न हरम में जबीं झुकी होगी

फ़ना बुलंदशहरी

शहर-ए-याराँ

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ग़म में इक मौज सरख़ुशी की है

एहतिशाम हुसैन

मैं हैराँ हूँ कि क्यूँ उस से हुई थी दोस्ती अपनी

एहसान दानिश

ज़ख़्म शादाब देखते हैं मुझे

डॉ. पिन्हाँ

शायर-ए-आज़म

दिलावर फ़िगार

इस जहाँ में प्यार महके ज़िंदगी बाक़ी रहे

देवमणि पांडेय

दुश्मनी ने सुना न होवेगा

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मिरा जी है जब तक तिरी जुस्तुजू है

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

ज़माना दोस्ती पर इन हसीनों की न इतराए

दाग़ देहलवी

क्या लुत्फ़-ए-दोस्ती कि नहीं लुत्फ़-ए-दुश्मनी

दाग़ देहलवी

ज़ाहिद न कह बुरी कि ये मस्ताने आदमी हैं

दाग़ देहलवी

सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना

दाग़ देहलवी

ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम

दाग़ देहलवी

फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं

दाग़ देहलवी

अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता

दाग़ देहलवी

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