दोस्ती Poetry (page 9)

जो आँसुओं को न चमकाए वो ख़ुशी क्या है

चरख़ चिन्योटी

देने वाले ये ज़िंदगी दी है

ब्रहमा नन्द जलीस

वो सुन कर हूर की तारीफ़ पर्दे से निकल आए

बेख़ुद देहलवी

आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप

बेख़ुद देहलवी

दर्द-ए-दिल में कमी न हो जाए

बेखुद बदायुनी

मैं तिरे डर से रो नहीं सकता

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

माना उस को गिला नहीं मुझ से

बशीर महताब

इक लम्हा भी गुज़ारूँ भला क्यूँ किसी के साथ

बशीर महताब

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला

बशीर बद्र

भूल शायद बहुत बड़ी कर ली

बशीर बद्र

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला

बशीर बद्र

हुई मुद्दतें ऐ दिल-ए-हज़ीं न पयाम है न सलाम है

बशीरुद्दीन राज़

मुझे कहना है

बशर नवाज़

ब-हर-उनवाँ मोहब्बत को बहार-ए-ज़िंदगी कहिए

बशर नवाज़

ऐ कहकशाँ-नवाज़ मुक़द्दर उजाल दे

बाक़र नक़वी

मुझे दुश्मन से अपने इश्क़ सा है

बाक़र मेहदी

बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है

बाक़र मेहदी

औरों पे इत्तिफ़ाक़ से सब्क़त मिली मुझे

बाक़र मेहदी

भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ

ज़फ़र

कैफ़ियत-ए-दिल-ए-हज़ीं हम से नहीं बयाँ हुई

बीएस जैन जौहर

ख़ाक चेहरे पे मल रहा हूँ मैं

अज़ीज़ नबील

धूप के जाते ही मर जाऊँगा मैं

अज़ीज़ नबील

मेरे रोने पे ये हँसी कैसी

अज़ीज़ लखनवी

दिल कुश्ता-ए-नज़र है महरूम-ए-गुफ़्तुगू हूँ

अज़ीज़ लखनवी

सँभल न पाए तो तक़्सीर-ए-वाक़ई भी नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

निकलना ख़ुद से मुमकिन है न मुमकिन वापसी मेरी

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

मआल-ए-दोस्ती कहिए हदीस-ए-मह-वशाँ कहिए

अज़हर सईद

करता मैं अब किसी से कोई इल्तिमास क्या

अतहर नादिर

तू अपने शहर-ए-तरब से न पूछ हाल मिरा

असलम महमूद

मैं एक रेत का पैकर था और बिखर भी गया

असलम महमूद

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