दुश्मन Poetry (page 10)

दीदा-ओ-दिल मिरी सरकार उठा लाए हैं

सफ़दर सलीम सियाल

दिल न माना मना के देख लिया

सदा अम्बालवी

इक सफ़र पर उसे भेज कर आ गए

साबिर वसीम

ग़ालिबन मेरे अलावा कोई गुज़रा भी नहीं

सबा अकबराबादी

मिले ग़ैरों से मुझ को रंज ओ ग़म यूँ भी है और यूँ भी

साइल देहलवी

थका ले और दौर-ए-आसमाँ तक

रियाज़ ख़ैराबादी

परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है

रियाज़ ख़ैराबादी

न तारे अफ़्शाँ न कहकशाँ है नमूना हँसती हुई जबीं का

रियाज़ ख़ैराबादी

मेरे पहलू में हमेशा रही सूरत अच्छी

रियाज़ ख़ैराबादी

कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर

रियाज़ ख़ैराबादी

जी उठे हश्र में फिर जी से गुज़रने वाले

रियाज़ ख़ैराबादी

होगी वो दिल में जो ठानी जाएगी

रियाज़ ख़ैराबादी

बहुत ही पर्दे में इज़हार-ए-आरज़ू करते

रियाज़ ख़ैराबादी

ये इज़्न-ए-आम है ऐ वाइ'ज़ो आओ वुज़ू कर लो

रिफ़अतुल क़ासमी

रहा असीर कई साल नक़्श-ए-पा की तरह

रिफ़अत सुलतान

न कोई दोस्त न दुश्मन अजीब दुनिया है

रिफ़अत सरोश

वो मुंतज़िर हैं हमारे तो हम किसी के हैं

रेहाना रूही

दिल के दर्द के कम होने का तन्हा कुछ सामान हुआ

रज़िया फ़सीह अहमद

चढ़ते हुए दरिया की अलामत नज़र आए

रज़ा हमदानी

किस लिए सहरा के मुहताज-ए-तमाशा होजिए

रज़ा अज़ीमाबादी

वो निकहत-ए-गेसू फिर ऐ हम-नफ़साँ आई

रविश सिद्दीक़ी

हुस्न-ए-असनाम ब-हर-लम्हा फ़ुज़ूँ है कि नहीं

रविश सिद्दीक़ी

रात की सारी हक़ीक़त दिन में उर्यां हो गई

रौनक़ रज़ा

न जाने कौन सा मंज़र नज़र से गुज़रा था

रौनक़ रज़ा

ना-तवानी में भी वो किरदार होना चाहिए

रौनक़ नईम

ज़िंदगी एहसान ही से मावरा थी मैं न था

रऊफ़ ख़ैर

वो ख़ुश-सुख़न तो किसी पैरवी से ख़ुश न हुआ

रऊफ़ ख़ैर

ये कौन सा मक़ाम है ऐ जोश-ए-बे-ख़ुदी

रतन पंडोरवी

कुछ हद भी ऐ फ़लक सितम-ए-ना-रवा की है

रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी

आस हुस्न-ए-गुमान से टूटी

रासिख़ इरफ़ानी

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