दुश्मन Poetry (page 12)

सर चश्म सब्र दिल दीं तन माल जान आठों

इंशा अल्लाह ख़ान

मल ख़ून-ए-जिगर मेरा हाथों से हिना समझे

इंशा अल्लाह ख़ान

कुछ समझ कर उस मह-ए-ख़ूबी से की थी दोस्ती

इम्दाद इमाम असर

दोस्ती की तुम ने दुश्मन से अजब तुम दोस्त हो

इम्दाद इमाम असर

क़ैद-ए-तन से रूह है नाशाद क्या

इम्दाद इमाम असर

ग़म नहीं मुझ को जो वक़्त-ए-इम्तिहाँ मारा गया

इम्दाद इमाम असर

अपनी जाँ-बाज़ी का जिस दम इम्तिहाँ हो जाएगा

इम्दाद इमाम असर

मैं उस बुत का वस्ल ऐ ख़ुदा चाहता हूँ

इमदाद अली बहर

दुपट्टा वो गुलनार दिखला गए

इमदाद अली बहर

ले चले हो तो कहीं दूर ही ले जाना मुझे

इकराम आज़म

वो कहते हैं कि आँखों में मिरी तस्वीर किस की है

इफ़्तिख़ार राग़िब

अच्छे दिनों की आस लगा कर मैं ने ख़ुद को रोका है

इफ़्तिख़ार राग़िब

एक ख़्वाब की दूरी पर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हम अहल-ए-जब्र के नाम-ओ-नसब से वाक़िफ़ हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

जिस्म-ओ-जाँ की बस्ती में सिलसिले नहीं मिलते

इफ़्फ़त ज़र्रीं

लब-ओ-रुख़्सार ओ जबीं से मिलिए

इब्न-ए-सफ़ी

कुछ तो तअल्लुक़ कुछ तो लगाओ

इब्न-ए-सफ़ी

मकड़ी

इब्न-ए-मुफ़्ती

दिल पीत की आग में जलता है

इब्न-ए-इंशा

अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें

इब्न-ए-इंशा

मर-मिटे जब से हम उस दुश्मन-ए-दीं पर साहब

हुसैन मजरूह

ख़यालों ख़यालों में किस पार उतरे

हुसैन आबिद

वो ये कहते हैं ज़माने की तमन्ना मैं हूँ

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

ज़िंदगी से मिली सौग़ात ये तन्हाई की

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

दोस्तों से तो किनारा भी नहीं कर सकता

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

दिल शादमाँ हो ख़ुल्द की भी आरज़ू न हो

हीरा लाल फ़लक देहलवी

वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ

हातिम अली मेहर

न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए

हातिम अली मेहर

गुज़रा अपना पस-ए-मुर्दन ही सही

हातिम अली मेहर

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