दुश्मन Poetry (page 13)

ग़ैर हँसते हैं फ़क़त इस लिए टल जाता हूँ

हातिम अली मेहर

ख़्वाब में तेरा आना-जाना पहले भी था आज भी है

हस्तीमल हस्ती

हमें वक़्फ़-ए-ग़म सर-ब-सर देख लेते

हसरत मोहानी

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हसरत मोहानी

यार इब्तिदा-ए-इश्क़ से बे-ज़ार ही रहा

हसरत अज़ीमाबादी

तू नहीं है तो तिरे हमनाम से रिश्ता रक्खा

हाशिम रज़ा जलालपुरी

परिंदा क़ैद में कुल आसमान भूल गया

हाशिम रज़ा जलालपुरी

मज़हब-ए-इश्क़ में शजरा नहीं देखा जाता

हाशिम रज़ा जलालपुरी

दश्त में ख़ाक उड़ाते हैं दुआ करते हैं

हाशिम रज़ा जलालपुरी

हमारे दोस्तों में कोई दुश्मन हो भी सकता है

हसीब सोज़

दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला

हसीब सोज़

कभी आबाद करता है कभी बरबाद करता है

हसन रिज़वी

शाख़ से फूल को फिर जुदा कर दिया

हसन निज़ामी

हर सुख़न में वो सेहर करते हैं

हसन बरेलवी

हाल-ए-मर्ग-ए-बे-कसी सुन कर असर कोई न हो

हसन बरेलवी

आज भी तेरी ही सूरत है मुक़ाबिल मेरे

हसन अकबर कमाल

शब की शब महफ़िल में कोई ख़ुश-कलाम आया तो क्या

हसन अब्बास रज़ा

ज़िंदगी अब रहे ख़ता कब तक

हरी मेहता

जिस ज़मीं पर तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा होता है

हरी चंद अख़्तर

यादों का शहर-ए-दिल में चराग़ाँ नहीं रहा

हनीफ़ अख़गर

जल्वों का जो तेरे कोई प्यासा नज़र आया

हनीफ़ अख़गर

घूम रहे हैं आँगन आँगन चाँद हवा और मैं

हामिद यज़दानी

चाहे कुछ हो ज़ेर-ए-एहसाँ अपनी नादारी न रख

हामिद मुख़्तार हामिद

हर वफ़ा ना-आश्ना से भी वफ़ा करना पड़ी

हामिद इलाहाबादी

कल शाम लब-ए-बाम जो वो जल्वा-नुमा था

हमीद जालंधरी

हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया

हकीम मंज़ूर

होता फ़नकार-ए-जदीद और न शाएर होता

हैदर अली जाफ़री

ये दिल लगाने में मैं ने मज़ा उठाया है

हैदर अली आतिश

दोस्तों से इस क़दर सदमे उठाए जान पर

हैदर अली आतिश

तोड़ कर तार-ए-निगह का सिलसिला जाता रहा

हैदर अली आतिश

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