दुश्मन Poetry (page 7)

यार निकला है आफ़्ताब की तरह

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

था पास अभी किधर गया दिल

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

तिरा दिल यार अगर माइल करे है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

सच अगर पूछो तो ना-पैदा है यक-रू आश्ना

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

सब मुख़ालिफ़ जब किनारे हो गए

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कशिश से दिल की उस अबरू-कमाँ को हम रखा बहला

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कशिश से दिल की उस अबरू कमाँ को हम रखा बहला

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जिस को देखा सो यहाँ दुश्मन-ए-जाँ है अपना

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

इश्क़ ने चुटकी सी ली फिर आ के मेरी जाँ के बीच

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

इश्क़ में पास-ए-जाँ नहीं है दुरुस्त

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

इस वास्ते निकलूँ हूँ तिरे कूचे से बच बच

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हर गुल उस बाग़ का नज़रों में दहाँ है गोया

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

इस दश्त की वुसअत में सिमट कर नहीं देखा

शहज़ाद क़मर

अपने रोज़ ओ शब का आलम कर्बला से कम नहीं

शहज़ाद क़मर

छोड़ कर वो हम को तन्हा किस जहाँ में जा बसा

शहज़ाद हुसैन साइल

वो मिरे पास है क्या पास बुलाऊँ उस को

शहज़ाद अहमद

सब्त है चेहरों पे चुप बन में अंधेरा हो चुका

शहज़ाद अहमद

कोशिश है शर्त यूँही न हथियार फेंक दे

शहज़ाद अहमद

ख़ुद ही मिल बैठे हो ये कैसी शनासाई हुई

शहज़ाद अहमद

जान मुक़द्दर में थी जान से प्यारा न था

शहज़ाद अहमद

फ़स्ल-ए-गुल ख़ाक हुई जब तो सदा दी तू ने

शहज़ाद अहमद

एक सियासी नज़्म

शहरयार

सराब-ए-शब भी है ख़्वाब-ए-शिकस्ता-पा भी है

शाहिदा हसन

दश्त-ए-वहशत को फिर आबाद करूँगा इक दिन

शाहिद कमाल

तुम से मिलते ही बिछड़ने के वसीले हो गए

शाहिद कबीर

सच का लम्हा जब भी नाज़िल होता है

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

यूँ तो मुमकिन नहीं दुश्मन मिरे सर पर पहुँचे

शहबाज़ ख़्वाजा

ख़ाक-ज़ादा हूँ मगर ता-ब फ़लक जाता है

शहबाज़ ख़्वाजा

यारो नहीं इतना मुझे क़ातिल ने सताया

शाह नसीर

जो रक़ीबों ने कहा तू वही बद-ज़न समझा

शाह नसीर

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