दुश्मन Poetry (page 6)

सामने तेरे हूँ घबराया हुआ

शारिक़ कैफ़ी

लोग सह लेते थे हँस कर कभी बे-ज़ारी भी

शारिक़ कैफ़ी

कहीं न था वो दरिया जिस का साहिल था मैं

शारिक़ कैफ़ी

झूट पर उस के भरोसा कर लिया

शारिक़ कैफ़ी

हाथ आता तो नहीं कुछ प तक़ाज़ा कर आएँ

शारिक़ कैफ़ी

पस्पाई

शरीफ़ कुंजाही

उर्दू

शम्स रम्ज़ी

मुश्तइ'ल हो गया वो ग़ुंचा-दहन दानिस्ता

शम्स रम्ज़ी

बिछड़ते टूटते रिश्तों को हम ने देखा था

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

हुजूम-ए-दर्द में ख़ंदाँ है कौन मेरे सिवा

शमीम करहानी

हँसो न तुम रुख़-ए-दुश्मन जो ज़र्द है यारो

शमीम करहानी

ये दौर-ए-अहल-ए-हवस है करम से काम न ले

शमीम जयपुरी

जब शिकायत थी कि तूफ़ाँ में सहारा न मिला

शमीम जयपुरी

जबकि दुश्मन हो राज़ दाँ अपना

शाकिर कलकत्तवी

हर चीज़ नहीं है मरकज़ पर इक ज़र्रा इधर इक ज़र्रा उधर

शकील बदायुनी

ये ऐश-ओ-तरब के मतवाले बे-कार की बातें करते हैं

शकील बदायुनी

सर भी है पा-ए-यार भी शौक़-ए-सिवा को क्या हुआ

शकील बदायुनी

करने दो अगर क़त्ताल-ए-जहाँ तलवार की बातें करते हैं

शकील बदायुनी

इश्क़ की चिंगारियों को फिर हवा देने लगे

शकील बदायुनी

हंगामा-ए-ग़म से तंग आ कर इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे

शकील बदायुनी

बस इक निगाह-ए-करम है काफ़ी अगर उन्हें पेश-ओ-पस नहीं है

शकील बदायुनी

लोग दुश्मन हुए उसी के 'शकेब'

शकेब जलाली

रुख़्सार आज धो कर शबनम ने पंखुड़ी के

शकेब जलाली

आग के दरमियान से निकला

शकेब जलाली

साथ ग़ुर्बत में कोई ग़ैर न अपना निकला

शकेब बनारसी

ये सितारे मुझे दीवार नहीं होने के

शाइस्ता सहर

नासेह बग़ल में आ कर दुश्मन हुआ हमारा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जब हुए 'हातिम' हम उस से आश्ना

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जा भिड़ाता है हमेशा मुझे ख़ूँ-ख़्वारों से

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हुस्न आईना फ़ाश करता है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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