वाचा Poetry (page 12)

तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़

हादी मछलीशहरी

दर्द सा उठ के न रह जाए कहीं दिल के क़रीब

हादी मछलीशहरी

शहर-ए-ज़ुल्मात को सबात नहीं

हबीब जालिब

ख़ुदा हमारा है

हबीब जालिब

अहद-ए-सज़ा

हबीब जालिब

दरख़्त सूख गए रुक गए नदी नाले

हबीब जालिब

नफ़स नफ़स न कहीं जाए राएगाँ अपना

हबीब राहत हबाब

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

हबीब मूसवी

फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे

हबीब मूसवी

मेरे लिए जीने का सहारा है अभी तक

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

गुलों से इतनी भी वाबस्तगी नहीं अच्छी

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

वफ़ा की तश्हीर करने वाला फ़रेब-गर है सितम तो ये है

गुलज़ार बुख़ारी

अक्स-ए-रौशन तिरा आईना-ए-जाँ में रक्खा

गुलज़ार बुख़ारी

इश्क़ अहद-ए-बेवफ़ा में बे-नवा हो जाएगा

ग़ुलाम नबी आवान

गलियों की उदासी पूछती है घर का सन्नाटा कहता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अम्न और तेरे अहद में ज़ालिम

ग़ुलाम मौला क़लक़

तेरे दर पर मक़ाम रखते हैं

ग़ुलाम मौला क़लक़

कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है

ग़ुलाम मौला क़लक़

साज़-ए-हयात क़ैद-ओ-सलासिल कहें किसे

ग़यास अंजुम

अंदाज़-ए-फ़िक्र अहल-ए-जहाँ का जुदा रहा

ग़नी एजाज़

कभी गुमान कभी ए'तिबार बन के रहा

ग़ालिब अयाज़

ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला

ग़ालिब

नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए

ग़ालिब

मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में

ग़ालिब

मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है

ग़ालिब

हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से

ग़ालिब

है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा

ग़ालिब

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