वाचा Poetry (page 13)

चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत ब-उर्यानी करे

ग़ालिब

आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है

ग़ालिब

करम के नाम पे उन का इ'ताब चाहते हैं

फ़ितरत अंसारी

कुछ न पूछो 'फ़िराक़' अहद-ए-शबाब

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

ज़िंदगी दर्द की कहानी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

फ़िराक़ गोरखपुरी

मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम

फ़िराक़ गोरखपुरी

इश्क़ की मायूसियों में सोज़-ए-पिन्हाँ कुछ नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

सुख़न जो उस ने कहे थे गिरह से बाँध लिए

फ़ाज़िल जमीली

ज़मीन चीख़ रही है कि आसमान गिरा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

सवाल सख़्त था दरिया के पार उतर जाना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

लहू ही कितना है जो चश्म-ए-तर से निकलेगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

तमाशा फिर सर-ए-बाज़ार करना

फ़य्याज़ तहसीन

देखिए हालात के जोगी का कब टूटे शराप

फ़सीह अकमल

दे गया लिख कर वो बस इतना जुदा होते हुए

फ़सीह अकमल

दिन को थे हम इक तसव्वुर रात को इक ख़्वाब थे

फ़ारूक़ शफ़क़

हिसार-ए-जिस्म से आगे निकल गया होता

फ़ारूक़ नाज़की

यूँ हुजरा-ए-ख़याल में बैठा हुआ हूँ मैं

फ़ारूक़ मुज़्तर

तुम्हारे क़स्र-आज़ादी के मेमारों ने क्या पाया

फ़ारूक़ बाँसपारी

वो अगर अब भी कोई अहद निभाना चाहे

फरीहा नक़वी

कोई अहद-ए-वफ़ा भूला हुआ हूँ

फ़रहत नदीम हुमायूँ

दौलत-ए-अहद-ए-जवानी हो गए

फ़रहत कानपुरी

वस्ल के लम्हे कहानी हो गए

फ़रहत कानपुरी

मेरी इक उम्र और इक अहद की तारीख़ रक़म है जिस पर

फ़रहत एहसास

सब मिरा आब-ए-रवाँ किस के इशारों पे बहा जाता है

फ़रहत एहसास

झगड़े ख़ुदा से हो गए अहद-ए-शबाब में

फ़रहत एहसास

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