दौलत-ए-अहद-ए-जवानी हो गए
चंद लम्हे जो कहानी हो गए
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आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर
मुँह-बोला बोल जगत का है जो मन में रहे सो अपना है
कुछ तो वुफ़ूर-ए-शौक़ में बाइ'स-ए-इम्तियाज़ हो
इक ख़लिश सी है मुझे तक़दीर से
इंसान तो नक़्द-ए-जाँ भी खो देता है
तिरा जल्वा शाम-ओ-सहर देखते हैं
हस्ती का राज़ क्या है ग़म-ए-हस्त-ओ-बूद है
'फ़रहत' तिरे नग़मों की वो शोहरत है जहाँ में
वस्ल के लम्हे कहानी हो गए
मेरा दिल-ए-नाशाद जो नाशाद रहेगा
जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है