दिल की राहें जुदा हैं दुनिया से
कोई भी राहबर नहीं होता
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आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर
इंसान तो नक़्द-ए-जाँ भी खो देता है
वो बहकी निगाहें क्या कहिए वो महकी जवानी क्या कहिए
मेरा दिल-ए-नाशाद जो नाशाद रहेगा
जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है
कुछ तो वुफ़ूर-ए-शौक़ में बाइ'स-ए-इम्तियाज़ हो
वस्ल के लम्हे कहानी हो गए
इक ख़लिश सी है मुझे तक़दीर से
'फ़रहत' तिरे नग़मों की वो शोहरत है जहाँ में
है साथ इबादत के अबा भी तेरी
दुनिया ने ख़ूब समझा दुनिया ने ख़ूब परखा