है साथ इबादत के अबा भी तेरी
शामिल है रियाज़त में रिया भी तेरी
ऐ शैख़ ये तौज़ीह ये तफ़्सीर-ए-बलीग़
पिन्हाँ है बलाग़त में बला भी तेरी
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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Gulzar
Allama Iqbal
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Habib Jalib
Ahmad Faraz
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इंसान तो नक़्द-ए-जाँ भी खो देता है
इक ख़लिश सी है मुझे तक़दीर से
आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर
हस्ती का राज़ क्या है ग़म-ए-हस्त-ओ-बूद है
दुनिया ने ख़ूब समझा दुनिया ने ख़ूब परखा
कुछ तो वुफ़ूर-ए-शौक़ में बाइ'स-ए-इम्तियाज़ हो
'फ़रहत' तिरे नग़मों की वो शोहरत है जहाँ में
तिरा जल्वा शाम-ओ-सहर देखते हैं
दौलत-ए-अहद-ए-जवानी हो गए
जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है
दिल की राहें जुदा हैं दुनिया से