फ़लक Poetry (page 2)

वहशत थी हम थे साया-ए-दीवार-ए-यार था

यगाना चंगेज़ी

बैठा हूँ पाँव तोड़ के तदबीर देखना

यगाना चंगेज़ी

आँख दिखलाने लगा है वो फ़ुसूँ-साज़ मुझे

यगाना चंगेज़ी

उन की रफ़्तार से दिल का अजब अहवाल हुआ

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल-ए-पुर दाग़ बाग़ किस का है

वज़ीर अली सबा लखनवी

अदू-ए-जाँ बुत-ए-बे-बाक निकला

वज़ीर अली सबा लखनवी

टीन का डिब्बा

वज़ीर आग़ा

तिरा ही रूप नज़र आए जा-ब-जा मुझ को

वज़ीर आग़ा

लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो

वज़ीर आग़ा

वो निगाह मिल के निगाह से ब-अदा-ए-ख़ास झिझक गई

वक़ार बिजनोरी

देहली

वामिक़ जौनपुरी

इन दो के सिवा कोई फ़लक से न हुआ पार

वलीउल्लाह मुहिब

वहीं जी उठते हैं मुर्दे ये क्या ठोकर से छूना है

वलीउल्लाह मुहिब

शब न ये सर्दी से यख़-बस्ता ज़मीं हर तर्फ़ है

वलीउल्लाह मुहिब

मोहब्बत से तरीक़-ए-दोस्ती से चाह से माँगो

वलीउल्लाह मुहिब

मिलती है उसे गौहर-ए-शब-ताब की मीरास

वलीउल्लाह मुहिब

मैं जीते-जी तलक रहूँ मरहून आप का

वलीउल्लाह मुहिब

हर आन यास बढ़नी हर दम उमीद घटनी

वलीउल्लाह मुहिब

दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ

वलीउल्लाह मुहिब

बुलबुल बजाए अपने तुझे हम-नवा से बहस

वलीउल्लाह मुहिब

मौसम-ए-गुल में हैं दीवानों के बाज़ार कई

वली उज़लत

कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग

वली उज़लत

उल्फ़त ने तिरी हम को तो रक्खा न कहीं का

वाजिद अली शाह अख़्तर

कभी लुत्फ़-ए-ज़बान-ए-ख़ुश-बयाँ थे

वाजिद अली शाह अख़्तर

आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

हुस्न की ज़बान से

वहीदुद्दीन सलीम

दावत-ए-इंक़िलाब

वहीदुद्दीन सलीम

मिज़्गाँ पे आज यास के मोती बिखर गए

वहीदा नसीम

ज़ेर-ए-पा अब न ज़मीं है न फ़लक है सर पर

वहीद अख़्तर

जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला

वहीद अख़्तर

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