दूरी Poetry (page 6)

नज़र की फ़त्ह कभी क़ल्ब की शिकस्त लगे

बेकल उत्साही

सबा गुल-ए-रेज़ जाँ-परवर फ़ज़ा है

बशीर फ़ारूक़

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना

बशीर बद्र

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

बशीर बद्र

परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता

बशीर बद्र

तिरी निगाह का अंदाज़ क्या नज़र आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

सुबुक-सरी में भी अंदेशा-ए-हवा रखना

बाक़र नक़वी

खोया खोया उदास सा होगा

बलराज कोमल

वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिक्खा

अज़्म बहज़ाद

वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिख्खा

अज़्म बहज़ाद

लम्हों ने यूँ समेट लिया फ़ासला बहुत

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

यूँही कटे न रहगुज़र-ए-मुख़्तसर कहीं

अज़ीज़ तमन्नाई

पड़ा है ज़िंदगी के इस सफ़र से साबिक़ा अपना

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

हटा के मेज़ से इक रोज़ आईना मैं ने

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

अलावा इक चुभन के क्या है ख़ुद से राब्ता मेरा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

बड़ा कठिन है रास्ता जो आ सको तो साथ दो

अता शाद

घर को कैसा भी तुम सजा रखना

अासिफ़ा ज़मानी

महकती हुई तन्हाइयाँ

अशोक लाल

रफ़्ता रफ़्ता ख़त्म क़िस्सा हो गया होना ही था

अशअर नजमी

मेरे उस के दरमियाँ ये फ़ासला अपनी जगह है

अशअर नजमी

कोई छोटा यहाँ कोई बड़ा है

असग़र वेलोरी

जितना था सरगर्म-ए-कार उतना ही दिल नाकाम था

आरज़ू लखनवी

अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का

अरशद अली ख़ान क़लक़

ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं

आरिफ़ अब्दुल मतीन

उसे तो पास-ए-ख़ुलूस-ए-वफ़ा ज़रा भी नहीं

अनवर मसूद

उसे छूते हुए भी डर रहा था

अंजुम सलीमी

किसी की आँख में ख़ुद को तलाश करना है

अमजद इस्लाम अमजद

जाने किस बात से दुखा है बहुत

आलोक मिश्रा

सवाल कैसे करूँ मैं इस से जवाब है जो मिरी दुआ का

अलमास शबी

लोग मोहतात हैं रवय्यों में

अली ज़ुबैर

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