दूरी Poetry (page 3)

ख़िज़ाँ जब आए तो आँखों में ख़ाक डालता हूँ

शहज़ाद अहमद

चराग़ ख़ुद ही बुझाया बुझा के छोड़ दिया

शहज़ाद अहमद

एक ही मिट्टी से हम दोनों बने हैं लेकिन

शहरयार

दिल में उतरेगी तो पूछेगी जुनूँ कितना है

शहरयार

शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की दवा मैं क्या करता

शहनवाज़ ज़ैदी

कोई लहजा कोई जुमला कोई चेहरा निकल आया

शाहिद लतीफ़

हम ज़मीन-ज़ादों को आसमाँ बना जाना

शफ़ीक़ सलीमी

जुदा हो कर वो हम से है जुदा क्या

शायर लखनवी

कभी तलाश न ज़ाए न राएगाँ होगी

शाद आरफ़ी

फ़ुरात-ए-फ़ासिला से दजला-ए-दुआ से उधर

सरवत हुसैन

आते जाते मौसमों का सिलसिला बाक़ी रहे

सरवर उस्मानी

आते जाते मौसमों का सिलसिला बाक़ी रहे

सरवर उस्मानी

नींद से जागी हुई आँखों को अंधा कर दिया

सरमद सहबाई

कौन है किस ने पुकारा है सदा कैसे हुई

सरमद सहबाई

परिंदे की आँख खुल जाती है

सारा शगुफ़्ता

हद-बंदी-ए-ख़िज़ाँ से हिसार-ए-बहार तक

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं वो हूँ जिस पे अब्र का साया पड़ा नहीं

साक़ी फ़ारुक़ी

रौशनी तक रौशनी का रास्ता कह लीजिए

समद अंसारी

बहुत क़रीब से कुछ भी न देख पाओगे

सलीम फ़ौज़

सुकूत बढ़ने लगा है सदा ज़रूरी है

सलीम फ़ौज़

मैं उस को भूल गया था वो याद सा आया

सलीम अहमद

लम्हा-ए-रफ़्ता का दिल में ज़ख़्म सा बन जाएगा

सलीम अहमद

पंक्चुवेशन

साइमा असमा

साए जो संग-ए-राह थे रस्ते से हट गए

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

एक मैं हूँ एक तू है बा-ख़बर कोई नहीं

सहबा वहीद

एक मैं हूँ एक तू है बा-ख़बर कोई नहीं

सहबा वहीद

रहेगा प्यासों से पानी का फ़ासला कब तक

साग़र ख़य्यामी

बिस्तर बिछा के रात वो कमरे में सो गया

सादिक़

सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी

साबिर

तुम ने कैसा ये राब्ता रक्खा

सादुल्लाह शाह

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