दूरी Poetry (page 5)

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा

हयात लखनवी

तय मुझ से ज़िंदगी का कहाँ फ़ासला हुआ

हसन निज़ामी

खुले दिलों से मिले फ़ासला भी रखते रहे

हसन नासिर

तसलसुल

हसन अब्बास रज़ा

सफ़र ही कोई रहेगा न फ़ासला कोई

हकीम मंज़ूर

मेरे उस के दरमियाँ जो फ़ासला रक्खा गया

हैदर क़ुरैशी

कौन से दिन हाथ में आया मिरे दामान-ए-यार

हैदर अली आतिश

तोड़ कर तार-ए-निगह का सिलसिला जाता रहा

हैदर अली आतिश

तू अंग अंग में ख़ुश्बू सी बन गया होगा

गुलाम जीलानी असग़र

ग़म नहीं जो लुट गए हम आ के मंज़िल के क़रीब

गुहर खैराबादी

अपनी नज़र में भी तो वो अपना नहीं रहा

ग़ज़नफ़र

निगाह-ए-हुस्न की तासीर बन गया शायद

फ़ितरत अंसारी

दोस्तों की अता है ख़ामोशी

फ़िरदौस गयावी

तूफ़ाँ से बच के दामन-ए-साहिल में रह गया

फ़िगार उन्नावी

बिछड़ना मुझ से तो ख़्वाबों में सिलसिला रखना

फ़ारूक़ बख़्शी

ना-क़ाबिल-ए-यक़ीं था अगरचे शुरूअ' में

फ़रहत एहसास

ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है

फ़राग़ रोहवी

आइने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे

दिनेश ठाकुर

मुमकिन है कि मिलते कोई दम दोनों किनारे

दिलावर अली आज़र

कहाँ मैं अभी तक नज़र आ सका हूँ

दिल अय्यूबी

दिल ने चाहा बहुत और मिला कुछ नहीं

देवमणि पांडेय

तमन्ना का दूसरा क़दम

दानियाल तरीर

रुमूज़-ए-औक़ाफ़ की नज़्म

दानियाल तरीर

नज़रों के गिर्द यूँ तो कोई दायरा न था

डी. राज कँवल

ख़याल को ज़ौ नज़र को ताबिश नफ़स को रख़शंदगी मिलेगी

बिर्ज लाल रअना

कोई आहट कोई सरगोशी सदा कुछ भी नहीं

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

न क़रीब आ न तो दूर जा ये जो फ़ासला है ये ठीक है

भवेश दिलशाद

क़ुर्बतें नहीं रक्खीं फ़ासला नहीं रक्खा

भारत भूषण पन्त

फ़रिश्ते देख रहे हैं ज़मीन ओ चर्ख़ का रब्त

बेकल उत्साही

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