कहाँ पर लफ़्ज़ लिख कर फ़ासला देना
कहाँ कॉमा लगाना है
कहाँ क़ौसैन में लिखना
कहाँ पैरा बनाना है
कहाँ एहसास को लिखना है बस उस के अलिफ़ जितना
कहाँ एहसास
कहाँ एहसास को पूरा दिखाना है
तरीक़ा ही नहीं आता
तुम्हें तो नज़्म लिखने का सलीक़ा ही नहीं आता
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
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शहर से क्या गई जानिब-ए-दश्त-ए-ज़र ज़िंदगी फ़ाख़्ता
शेल्फ़ पे उल्टा कर के रख दो और बिसरा दो
ख़्वाब जज़ीरा बन सकते थे नहीं बने
अजब रंग-ए-तिलस्म-ओ-तर्ज़-ए-नौ है
दरिंदे साथ रहना चाहते हैं आदमी के
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ख़्वाब का क्या है रात के नक़्श-ओ-निगार बनाओ
कथार्सिस
ये मो'जिज़ा भी दिखाती है सब्ज़ आग मुझे
आख़िर जिस्म भी दीवारों को सौंप गए
चाँद छूने की तलबगार नहीं हो सकती
एक बुझाओ एक जलाओ ख़्वाब का क्या है