आख़िर जिस्म भी दीवारों को सौंप गए
दरवाज़ों में आँखें धरने वाले लोग
Jaun Eliya
Habib Jalib
Rahat Indori
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Gulzar
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
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दरिंदे साथ रहना चाहते हैं आदमी के
गया कि सैल-ए-रवाँ का बहाव ऐसा था
तसलसुल से गुमाँ लिक्खा गया है
तमन्ना का दूसरा क़दम
शेल्फ़ पे उल्टा कर के रख दो और बिसरा दो
उजाला ही उजाला रौशनी ही रौशनी है
अजब रंग-ए-तिलस्म-ओ-तर्ज़-ए-नौ है
जरस और सारबानों तक पहुँचना चाहता है
आवाज़ का नौहा
साकित हो मगर सब को रवानी नज़र आए
ख़्वाब-कारी वही कमख़्वाब वही है कि नहीं