हर्फ़ों की तरतीब उलट कर
कान को नाक बना सकता हूँ
नाक को कान बना सकता हूँ
शेर को एक इशारे पर मैं
बंदर नाच नचा सकता हूँ
बंदर को जंगल का राज दिला सकता हूँ
सच को झूट बना सकता हूँ
झूट को सच बना सकता हूँ
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देखना ये है कि जंगल को चलाने के लिए
बिला-जवाज़ नहीं है फ़लक से जंग मिरी
आग में जलते हुए देखा गया है
एक बुझाओ एक जलाओ ख़्वाब का क्या है
एक बे-चेहरा मुसाफ़िर रंग ओढ़े
तमन्ना का दूसरा क़दम
गया कि सैल-ए-रवाँ का बहाव ऐसा था
मैं नफ़ी में
ख़ामोशी की क़िर्अत करने वाले लोग
मिट्टी था और दूध में गूँधा गया मुझे
चाँद छूने की तलबगार नहीं हो सकती
ख़्वाब जज़ीरा बन सकते थे नहीं बने