एक बे-चेहरा मुसाफ़िर रंग ओढ़े
धुँद में चलते हुए देखा गया है
Mir Taqi Mir
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Rahat Indori
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
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जरस और सारबानों तक पहुँचना चाहता है
रंग और नूर की तमसील से होगा कि नहीं
खंडर ये फिर बसाने का इरादा ही नहीं था
शहर से क्या गई जानिब-ए-दश्त-ए-ज़र ज़िंदगी फ़ाख़्ता
उजाला ही उजाला रौशनी ही रौशनी है
ख़्वाब जज़ीरा बन सकते थे नहीं बने
ख़ामोशी की क़िर्अत करने वाले लोग
आग में जलते हुए देखा गया है
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ये मो'जिज़ा भी दिखाती है सब्ज़ आग मुझे
तमन्ना का दूसरा क़दम
एक बुझाओ एक जलाओ ख़्वाब का क्या है