दूरी Poetry (page 2)

आइने के रू-ब-रू इक आइना रखता हूँ मैं

तौसीफ ताबिश

किसी की याद को हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं

तिलोकचंद महरूम

हमारी क़ुर्बतों में फ़ासला न रह जाए

तसनीम आबिदी

अच्छे हैं फ़ासले के ये तारे सजाते हैं

तासीर सिद्दीक़ी

जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात

तारिक़ क़मर

तमाम शहर ही तेरी अदा से क़ाएम है

तालीफ़ हैदर

यक़ीं से जो गुमाँ का फ़ासला है

ताबिश कमाल

कोई इज़हार कर सकता है कैसे

ताबिश कमाल

यक़ीं से जो गुमाँ का फ़ासला है

ताबिश कमाल

तुझ से टूटा रब्त तो फिर और क्या रह जाएगा

सय्यद शकील दस्नवी

ये आँख तंज़ न हो ज़ख़्म-ए-दिल हरा न लगे

सय्यद अमीन अशरफ़

न जाने जाए कहाँ तक ये सिलसिला दिल का

सय्यद अमीन अशरफ़

ख़िरद ऐ बे-ख़बर कुछ भी नहीं है

सय्यद अमीन अशरफ़

तेरे जाने में और आने में

सुदर्शन फ़ाकिर

दिल के दीवार-ओ-दर पे क्या देखा

सुदर्शन फ़ाकिर

रहबर मिला न हम को कोई रहनुमा मिला

सिद्दीक़ उमर

हिज्र ओ विसाल

शोरिश काश्मीरी

वो जिस के दिल में निहाँ दर्द दो-जहाँ का था

शोला हस्पानवी

तेरी उल्फ़त में न जाने क्या से क्या हो जाऊँगा

शोला हस्पानवी

अपना ख़ालिक़ ख़ुद ही था मेरा ख़ुदा कोई न था

शोला हस्पानवी

जहाँ पे बसना है मुझ को अब वो जहान ईजाद हो रहा है

शहज़ाद रज़ा लम्स

बीच का बढ़ता हुआ हर फ़ासला ले जाएगा

शीन काफ़ निज़ाम

छीन कर वो लज़्ज़त-ए-सौत-ओ-सदा ले जाएगा

शीन काफ़ निज़ाम

हयात रास न आए अजल बहाना करे

शाज़ तमकनत

फ़ासला तो है मगर कोई फ़ासला नहीं

शमीम करहानी

गर्द-ए-मजनूँ ले के शायद बाद-ए-सहरा जाए है

शकील जाज़िब

एक लम्हे में कटा है मुद्दतों का फ़ासला

शहज़ाद अहमद

दिल ओ निगाह का ये फ़ासला भी क्यूँ रह जाए

शहज़ाद अहमद

ज़मीं अपने लहू से आश्ना होने ही वाली है

शहज़ाद अहमद

मैं कि ख़ुश होता था दरिया की रवानी देख कर

शहज़ाद अहमद

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