सड़क Poetry (page 17)

रूठ कर निकला तो वो इस सम्त आया भी नहीं

असलम कोलसरी

आहट

असलम आज़ाद

अब और चलने का इस दिल में हौसला ही न था

असलम अंसारी

ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में

आसिमा ताहिर

सामने रह कर न होना मसअला मेरा भी है

आसिम वास्ती

ओझल हुई नज़र से बे-बाल-ओ-पर गई है

अासिफ़ साक़िब

इक पल में क्या कुछ बदल गया जब बे-ख़बरों को ख़बर हुई

अशफ़ाक़ आमिर

रहगुज़र भी तिरी पहले थी अजनबी

अशहर हाशमी

ना-गुज़ीर

असग़र मेहदी होश

हम-साई

असद जाफ़री

ख़ुशबू कहीं छुपी है मोहब्बत के फूल की

आरज़ू लखनवी

किसी गुमान-ओ-यक़ीं की हद में वो शोख़-ए-पर्दा-नशीं नहीं है

आरज़ू लखनवी

आँख उन से मिरी मिली थी कभी

अरुण कुमार आर्य

हमें मिट के भी ये हसरत कि भटकते उस गली में

अरशद सिद्दीक़ी

न पयाम चाहते हैं न कलाम चाहते हैं

अरशद सिद्दीक़ी

जब मैं उस आदमी से दूर हुआ

अरशद लतीफ़

गुल-गूँ तिरी गली रहे आशिक़ के ख़ून से

अरशद अली ख़ान क़लक़

इश्क़ में तेरे जान-ए-ज़ार हैफ़ है मुफ़्त में चली

अरशद अली ख़ान क़लक़

डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में

अरशद अली ख़ान क़लक़

गिर्हें खुलती नहीं

आरिफ़ा शहज़ाद

गिला तिरे फ़िराक़ का जो आज-कल नहीं रहा

आरिफ़ इशतियाक़

उस गली से मिरे गुज़रने तक

आरिफ़ इमाम

अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं

आरिफ़ इमाम

हैं पत्थरों की ज़द पे तुम्हारी गली में हम

अनवर शऊर

उस बज़्म में क्या कोई सुने राय हमारी

अनवर शऊर

मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक

अनवर शऊर

काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए

अनवर शऊर

आवारा हूँ रैन-बसेरा कोई नहीं मेरा

अनवर शऊर

बातें पागल हो जाती हैं

अनवार फ़ितरत

खिला है फूल बहुत रोज़ में मुक़द्दर का

अनवर अंजुम

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