रोटेशन Poetry (page 8)

दिल्ली की लड़कियाँ

साग़र ख़य्यामी

निकल के जाऊँ कहाँ मैं हिसार-ए-गर्दिश से

सईद ख़ान

शिकस्त मान के तस्ख़ीर कर लिया है मुझे

सईद ख़ान

जब भी तिरी क़ुर्बत के कुछ इम्काँ नज़र आए

सादिक़ नसीम

इक शक्ल बे-इरादा सर-ए-बाम आ गई

साबिर वसीम

किसी ने हम को अता नहीं की हमारी गर्दिश है अपनी गर्दिश

रियाज़ लतीफ़

चमगादड़

रियाज़ लतीफ़

तमाम ख़लियों में अक्सर सुनाई देता है

रियाज़ लतीफ़

सब ख़लाओं को ख़लाओं से भिगो सकता है

रियाज़ लतीफ़

जाल रगों का गूँज लहू की साँस के तेवर भूल गए

रियाज़ लतीफ़

हर एक ख़लिया को आईना घर बनाते हुए

रियाज़ लतीफ़

गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं

रियाज़ लतीफ़

थका ले और दौर-ए-आसमाँ तक

रियाज़ ख़ैराबादी

मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे

रियाज़ ख़ैराबादी

पाँव के हाथ से गर्दिश ही रही मुझ को मुदाम

रिन्द लखनवी

लाएगी गर्दिश में तुझ को भी मिरी आवारगी

रिन्द लखनवी

वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके

रिन्द लखनवी

क्यूँ-कर न लाए रंग गुलिस्ताँ नए नए

रिन्द लखनवी

रोज़ इक शख़्स चला जाता है ख़्वाहिश करता

राज़ी अख्तर शौक़

जिस पल मैं ने घर की इमारत ख़्वाब-आसार बनाई थी

राज़ी अख्तर शौक़

इन्ही गलियों में इक ऐसी गली है

राज़ी अख्तर शौक़

दो बादल आपस में मिले थे फिर ऐसी बरसात हुई

राज़ी अख्तर शौक़

लगी है भीड़ बड़ा मय-कदे का नाम भी है

रविश सिद्दीक़ी

ख़ल्वती-ए-ख़याल को होश में कोई लाए क्यूँ

रविश सिद्दीक़ी

उम्र भर पेश-ए-नज़र माह-ए-तमाम आते रहे

रौनक़ रज़ा

सब होत न होत से नथरी हुई आसान ग़ज़ल हूँ छा के सुनो

रउफ़ रज़ा

लुभा रही तो है दुनिया चमक दमक की मुझे

रऊफ़ ख़ैर

मिरी दिन के उजालों पर नज़र है

रसूल साक़ी

सिलसिला-ए-ज़िन्दगी

राशिद आज़र

आबला

राशिद आज़र

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