घर Poetry (page 2)

देने वाले तुझे देना है तो इतना दे दे

संजय मिश्रा शौक़

सुब्ह का धोका हुआ है शाम पर

फ़ारूक़ इंजीनियर

किसी के बिछड़ने का डर ही नहीं

फ़ारूक़ इंजीनियर

सब ने देखा मुझे उठता हुआ मेरे घर से

अजमल सिद्दीक़ी

ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी

आमिर अमीर

मैं तिरे लुत्फ़-ओ-करम का जब से रस पीने लगा

अख़्तर हाशमी

कैसी उफ़्ताद पड़ी

फ़ैसल हाश्मी

कई लम्हे

फ़ैसल हाश्मी

सुकून

हरबंस मुखिया

एक याद

हबीब जालिब

मुर्ग़-ए-मरहूम

असद जाफ़री

दुश्मन की तरफ़ दोस्ती का हाथ

मुनीर नियाज़ी

तेरी नज़रों से यार उतर जाऊँ

लोग सब क़ीमती पोशाक पहन कर पहुँचे

ग़म के बे-नूर मज़ारों का गला घोंट आया

किस के नग़्मे गूँजते हैं ज़िंदगी के साज़ में

अँधेरों से उलझने की कोई तदबीर करना है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ये शोर-ओ-शर तो पहले दिन से आदम-ज़ाद में है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

नदी किनारे बैठे रहना अच्छा है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

यूँ जो पलकों को मिला कर नहीं देखा जाता

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

शुक्र किया है इन पेड़ों ने सब्र की आदत डाली है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सफ़र पे जैसे कोई घर से हो के जाता है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

पेड़ों से बात-चीत ज़रा कर रहे हैं हम

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

कभी ख़ुशबू कभी आवाज़ बन जाना पड़ेगा

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

जाने हम ये किन गलियों में ख़ाक उड़ा कर आ जाते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

हम जाना चाहते थे जिधर भी नहीं गए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

ज़ुहूर नज़र

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

छोड़ कर दिल में गई वहशी हवा कुछ भी नहीं

ज़ुहूर नज़र

तिलस्माती फ़ज़ा तख़्त-ए-सुलैमाँ पर लिए जाना

ज़ुबैर शिफ़ाई

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