गरीबां Poetry (page 12)

ग़म-ए-हयात पे ख़ंदाँ हैं तेरे दीवाने

दर्शन सिंह

फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं

दाग़ देहलवी

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का

दाग़ देहलवी

बी.टी-नामा

कर्नल मोहम्मद ख़ान

इस तरह कर गया दिल को मिरे वीराँ कोई

चराग़ हसन हसरत

है मिरा ज़ब्त-ए-जुनूँ जोश-ए-जुनूँ से बढ़ कर

चकबस्त ब्रिज नारायण

दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना

चकबस्त ब्रिज नारायण

दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना

चकबस्त ब्रिज नारायण

इतना भी न साक़ी होश रहा पी कर ये हमें मय-ख़ाना था

बिस्मिल इलाहाबादी

मातम-कदा बना है गुलिस्ताँ तिरे बग़ैर

बिल्क़ीस बेगम

आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया

भारतेंदु हरिश्चंद्र

आशिक़ हैं मगर इश्क़ नुमायाँ नहीं रखते

बेख़ुद देहलवी

उदास काग़ज़ी मौसम में रंग ओ बू रख दे

बेकल उत्साही

इक बेवफ़ा को दर्द का दरमाँ बना लिया

बहज़ाद लखनवी

दिल मेरा तेरा ताब-ए-फ़रमाँ है क्या करूँ

बहज़ाद लखनवी

काबे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिए

बेदम शाह वारसी

गुल का किया जो चाक गरेबाँ बहार ने

बेदम शाह वारसी

बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना

बेदम शाह वारसी

राज़ है इबरत-असर फ़ितरत की हर तहरीर का

बेबाक भोजपुरी

लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

मुझ से बिछड़ के वो भी परेशान था बहुत

बाक़ी अहमदपुरी

ये रुख़-ए-यार नहीं ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ के तले

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

जो तुम और सुब्ह और गुलनार-ए-ख़ंदाँ हो के मिल बैठे

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

ग़ैरत-ए-गुल है तू और चाक-गरेबाँ हम हैं

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

बहुत है एक नज़र

बाक़र मेहदी

बीसवीं सदी के हम शाइ'र-ए-परेशाँ हैं

बनो ताहिरा सईद

शाने की हर ज़बाँ से सुने कोई लाफ़-ए-ज़ुल्फ़

ज़फ़र

तिरी महफ़िल में फ़र्क़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ कौन देखेगा

अज़ीज़ वारसी

कंफ़ेशन

अज़ीज़ क़ैसी

मिटा के अंजुमन-ए-आरज़ू सदा दी है

अज़ीज़ क़ैसी

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