गुलिस्ताँ Poetry (page 4)
नहीं सबात बुलंदी-ए-इज्ज़-ओ-शाँ के लिए
ज़ौक़
जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा
ज़ौक़
जो कू-ए-दोस्त को जाऊँ तो पासबाँ के लिए
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
एक रात आप ने उम्मीद पे क्या रक्खा है
शाज़ तमकनत
उर्दू ज़बान
शायर अली शायर
बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
शौक़ बहराइची
ज़ुल्फ़-ए-दराज़ से ये नुमायाँ है ग़ालिबन
शौक़ बहराइची
ये ख़बर आई है आज इक मुर्शिद-ए-अकमल के पास
शौक़ बहराइची
किया जो ए'तिबार उन पर मरीज़-ए-शाम-ए-हिज्राँ ने
शौक़ बहराइची
है शैख़ ओ बरहमन पर ग़ालिब गुमाँ हमारा
शौक़ बहराइची
आँसू मिरी आँखों से टपक जाए तो क्या हो
शौक़ बहराइची
उस के नाम
शौकत परदेसी
फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी
शरीफ़ कुंजाही
ये क्या अंदाज़ हैं दस्त-ए-जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ के
शम्स इटावी
वजूद-ए-बर्क़ ज़रूरी है गुलिस्ताँ के लिए
शम्स इटावी
ख़लिश हो जिस में वो अरमाँ तलाश करता हूँ
शम्स इटावी
हुस्न की बिजलियाँ अल-अमाँ अल-अमाँ
शम्स इटावी
उन के बग़ैर हम जो गुलिस्ताँ में आ गए
शकील बदायुनी
तिरी यादों से दिल फ़रोज़ाँ करेंगे
शकील बदायुनी
इश्क़ के ग़म-गुसार हैं हम लोग
शकेब जलाली
दश्त ओ सहरा अगर बसाए हैं
शकेब जलाली
जिस ने आदम के तईं जाँ बख़्शा
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
वाक़िआ कोई न जन्नत में हुआ मेरे ब'अद
शहज़ाद अहमद
तेरे घर की भी वही दीवार थी दरवाज़ा था
शहज़ाद अहमद
अक़्ल हर बात पे हैराँ है इसे क्या कहिए
शहज़ाद अहमद
जब अपना मुक़द्दर ठहरे हैं ज़ख़्मों के गुलिस्ताँ और सही
शाहिद अख़्तर
चाँद माँगा न कभी हम ने सितारे माँगे
शाहिद अख़्तर
ज़माना मेरी तबाही पे जो उदास हुआ
शाहीन बद्र
आईना ले के देख ज़रा अपने हुस्न को
शाह नसीर
कर के आज़ाद हर इक शहपर-ए-बुलबुल कतरा
शाह नसीर
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