गुलिस्ताँ Poetry (page 6)

मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

नहीं है आशियाँ लेकिन है ख़ाक-ए-आशियाँ बाक़ी

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

हिजाबात उठ रहे हैं दरमियाँ से

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

फूल इस ख़ाक-दाँ के हम भी हैं

सैफ़ुद्दीन सैफ़

बड़े ख़तरे में है हुस्न-ए-गुलिस्ताँ हम न कहते थे

सैफ़ुद्दीन सैफ़

हमीं से रंग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रंग-ए-बहार

साहिर लुधियानवी

हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं

साहिर लुधियानवी

गुल अपने ग़ुंचे अपने गुल्सिताँ अपना बहार अपनी

साग़र निज़ामी

अपनी खोई हुई तौक़ीर नुमायाँ कर दें

सईदा जहाँ मख़्फ़ी

करे रश्क-ए-गुलिस्ताँ दिल को 'फ़ाएज़'

सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़

मिरा महबूब सब का मन हरन है

सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़

शिकस्त-ए-आबला-ए-दिल में नग़्मगी है बहुत

सादिक़ नसीम

जब भी तिरी क़ुर्बत के कुछ इम्काँ नज़र आए

सादिक़ नसीम

किसी तौर हो न पिन्हाँ तिरा रंग-ए-रू-सियाही

साबिर ज़फ़र

इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है

सबा अकबराबादी

है जो दरवेश वो सुल्ताँ है ये मा'लूम हुआ

सबा अकबराबादी

सामने उन को पाया तो हम खो गए आज फिर हसरत-ए-गुफ़्तुगू रह गई

सबा अफ़ग़ानी

कारवाँ लुट गया राहबर छुट गया रात तारीक है ग़म का यारा नहीं

सबा अफ़ग़ानी

होश-ओ-ख़िरद से दूर हूँ सूद-ओ-ज़ियाँ से दूर

सबा अफ़ग़ानी

बसा-औक़ात आ जाते हैं दामन से गरेबाँ में

साइल देहलवी

बनते ही शहर का ये देखिए वीराँ होना

एस ए मेहदी

मुँह-ज़ोर आरज़ूओं की बे-मेहरियाँ न पूछ

रूही कंजाही

तुझ बिन रह-ए-हयात में लुत्फ़-ए-सफ़र कहाँ

रोहित सोनी ‘ताबिश’

उदास उदास थे हम उस को इक ज़माना हुआ

रिन्द साग़री

क्यूँ-कर न लाए रंग गुलिस्ताँ नए नए

रिन्द लखनवी

दिल-लगी ग़ैरों से बे-जा है मिरी जाँ छोड़ दे

रिन्द लखनवी

किसी की चश्म-ए-गुरेज़ाँ में जल बुझे हम लोग

रेहाना रूही

बुढ़ापा

रज़ी रज़ीउद्दीन

झुक सके आप का ये सर तो झुका कर देखें

रज़ा जौनपुरी

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