गुलिस्ताँ Poetry (page 7)

उस से बढ़ कर तो कोई बे-सर-ओ-सामाँ न मिला

रविश सिद्दीक़ी

फ़रोग़-ए-गुल से अलग बर्क़-ए-आशियाँ से अलग

रविश सिद्दीक़ी

हम तो दिन-रात इसी सोच में मर जाएँगे

राम नाथ असीर

रक़्स-ए-शबाब-ओ-रंग-ए-बहाराँ नज़र में है

राम कृष्ण मुज़्तर

फिर भीग चलीं आँखें चलने लगी पुर्वाई

राम कृष्ण मुज़्तर

क्या ग़ज़ब है कि मुलाक़ात का इम्काँ भी नहीं

राम कृष्ण मुज़्तर

नई दुनिया

राजेन्द्र नाथ रहबर

क़स्र-ए-वीराँ

राजा मेहदी अली ख़ाँ

गुज़ारे तुम ने कैसे रोज़-ओ-शब हम से ख़फ़ा हो कर

राज कुमार सूरी नदीम

दिल से या गुल्सिताँ से आती है

रईस अमरोहवी

परेशाँ करने वालों को परेशाँ कौन देखेगा

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

दिल वाले हैं हम रस्म-ए-वफ़ा हम से मिली है

राही शहाबी

दिल वाले हैं हम रस्म-ए-वफ़ा हम से मिली है

राही शहाबी

ख़ंदगी ख़ुश लब तबस्सुम मिस्ल-ए-अरमाँ हो गए

इरफ़ान अहमद मीर

हुस्न-ए-फ़ितरत की आबरू मुझ से

इक़बाल सुहैल

अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया

इक़बाल सुहैल

जब शाख़-ए-तमन्ना पे कोई फूल खिला है

इक़बाल मिनहास

जिस में न कोई रंग न आहंग न ख़ुशबू

इक़बाल अज़ीम

ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए और मोहतात पास-ए-वफ़ा चाहिए

इक़बाल अज़ीम

ऐ अहल-ए-वफ़ा दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते

इक़बाल अज़ीम

मुझ पर निगाह-ए-गर्दिश-ए-दौराँ नहीं रही

इक़बाल आबिदी

सद-बर्ग गह दिखाई है गह अर्ग़वाँ बसंत

इंशा अल्लाह ख़ान

मिल मुझ से ऐ परी तुझे क़ुरआन की क़सम

इंशा अल्लाह ख़ान

कभी तो चश्म-ए-फ़लक में हया दिखाई दे

इनआम आज़मी

एक तितली उड़ी

इमरान शमशाद

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया

इमदाद अली बहर

चुनने न दिया एक मुझे लाख झड़े फूल

इमदाद अली बहर

हो गए दफ़्न हज़ारों ही गुल-अंदाज़ इस में

इमाम बख़्श नासिख़

ये कौन आया

इब्न-ए-इंशा

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