गुलिस्ताँ Poetry (page 5)

है दिल को मेरे आरिज़-ए-जानाँ से इर्तिबात

शाह आसिम

चर्चे हर इक ज़बान पे हुस्न-ए-बुताँ के हैं

शाग़िल क़ादरी

दुश्मनी लर्ज़ां है यारो दोस्ती के सामने

शफ़ीउल्लाह राज़

ये क्या कि मेरे यक़ीं में ज़रा गुमाँ भी है

शफ़क़ सुपुरी

ना-फ़हम कहूँ मैं उसे ऐसा भी नहीं है

शायर फतहपुरी

बद-गुमानी जो हुई शम्अ' से परवाने को

शाद लखनवी

ज़ब्त-ए-नावक-ए-ग़म से बात बन तो सकती है

शाद आरफ़ी

वक़्त क्या शय है पता आप ही चल जाएगा

शाद आरफ़ी

कभी तलाश न ज़ाए न राएगाँ होगी

शाद आरफ़ी

ब-पास-ए-एहतियात-ए-आरज़ू ये बार-हा हुआ

शाद आरफ़ी

लहू से मैं ने लिखा था जो कुछ दीवार-ए-ज़िंदाँ पर

सीमाब अकबराबादी

मेरी रिफ़अत पर जो हैराँ है तो हैरानी नहीं

सीमाब अकबराबादी

ख़ुद उठ के हाथ मेरे गरेबाँ में आ गए

सीमाब अकबराबादी

जिस्म-ए-बे-सर कोई बिस्मिल कोई फ़रियादी था

सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर

महफ़िल-ए-दोस्त में गो सीना-फ़िगार आए हैं

सय्यद एहतिशाम हुसैन

तुझ क़ैद से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

धूम से सुनते हैं अब की साल आती है बहार

मोहम्मद रफ़ी सौदा

तुझ को मेरे क़ुर्ब में पा कर जलते हैं दीवाने लोग

सत्यपाल जाँबाज़

ख़ून-ए-दिल से रह-ए-हस्ती को फ़रोज़ाँ कर लें

सत्यपाल जाँबाज़

तेरी नाराज़गी फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ है

सरताज आलम आबिदी

तश्कील बदर की है कभी है हिलाल की

सरीर काबिरी

देखा किसी का हम ने न ऐसा सुना दिमाग़

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

कौन इन लाखों अदाओं में मुझे प्यारी नहीं

साक़िब लखनवी

गई नहीं तिरे ज़ुल्म-ओ-सितम की ख़ू अब तक

संजय मिश्रा शौक़

बहार-ए-गुलिस्ताँ हम को न पहचाने तअज्जुब है

सालिक लखनवी

आँख के कुंज में इक दश्त-ए-तमन्ना ले कर

सलीम बेताब

बिजली गिरेगी सेहन-ए-चमन में कहाँ कहाँ

सलाम संदेलवी

मैं तो कहता हूँ तुम्ही दर्द के दरमाँ हो ज़रूर

सलाम मछली शहरी

हम ऐसे लोग जल्द असीर-ए-ख़िज़ाँ हुए

सलाम मछली शहरी

निखरा ख़िज़ाँ से रंग-ए-बहाराँ है इन दिनों

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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