गुलिस्ताँ Poetry (page 8)

ये और बात है हर शख़्स के गुमाँ में नहीं

हीरा लाल फ़लक देहलवी

वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया

हातिम अली मेहर

ख़ुशा वो बाग़ महकती हो जिस में बू तेरी

हसरत शरवानी

मैं किस वरक़ को छुपाऊँ दिखाऊँ कौन सा बाब

हसन नईम

आई पतझड़ गिरे फ़स्ल-ए-गुल के निशाँ रात-भर में

हसन अख्तर जलील

इतना सुकून तो ग़म-ए-पिन्हाँ में आ गया

हनीफ़ अख़गर

इस तरह मह-रुख़ों को पशेमाँ करेंगे हम

हनीफ़ अख़गर

हुआ है सामने आँखों के ख़ानदाँ आबाद

हमदम कशमीरी

बाद-ए-सरसर है नसीम-ए-गुलिस्ताँ मेरे लिए

हकीम मोहम्मद हुसैन अहक़र

मैं उस गुलशन का बुलबुल हूँ बहार आने नहीं पाती

हैदर अली आतिश

अमरद-परस्त है तो गुलिस्ताँ की सैर कर

हैदर अली आतिश

वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा

हैदर अली आतिश

पयम्बर मैं नहीं आशिक़ हूँ जानी

हैदर अली आतिश

ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए

हैदर अली आतिश

ख़ार मतलूब जो होवे तो गुलिस्ताँ माँगूँ

हैदर अली आतिश

हंगाम-ए-नज़'अ महव हूँ तेरे ख़याल का

हैदर अली आतिश

दिल की कुदूरतें अगर इंसाँ से दूर हों

हैदर अली आतिश

दहन पर हैं उन के गुमाँ कैसे कैसे

हैदर अली आतिश

बुलबुल को ख़ार ख़ार-ए-दबिस्ताँ है इन दिनों

हैदर अली आतिश

आइना सीना-ए-साहब-नज़राँ है कि जो था

हैदर अली आतिश

कृष्ण कन्हैया

हफ़ीज़ जालंधरी

रौशनी सी कभी कभी दिल में

हफ़ीज़ होशियारपुरी

नर्गिस पे तो इल्ज़ाम लगा बे-बसरी का

हफ़ीज़ होशियारपुरी

पैग़ाम ईद

हफ़ीज़ बनारसी

लब-ए-फ़ुरात वही तिश्नगी का मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

हदीस-ए-तल्ख़ी-ए-अय्याम से तकलीफ़ होती है

हफ़ीज़ बनारसी

वो निगाहें जो दिल-ए-महज़ूँ में पिन्हाँ हो गईं

हादी मछलीशहरी

देख कर शम्अ के आग़ोश में परवाने को

हादी मछलीशहरी

मुलाक़ात

हबीब जालिब

जब कोई कली सेहन-ए-गुलिस्ताँ में खिली है

हबीब जालिब

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